अपना पूर्वांचल महासंघ

अपना पूर्वांचल महासंघ” एक गैर राजनीतिक संस्था है, जो पूर्वांचल के विकास के लिए कटिबद्ध है। यह संस्था मुंबई में पंजीकृत है। कोविड-19 के संकट काल में संस्था ने महाराष्ट्र के पूर्व गृह राज्य मंत्री कृपाशंकर सिंह जी और पूर्व मंत्री अमरजीत मिश्र जी के संरक्षण और मार्गदर्शन में प्रवासी पूर्वांचलवासियों की हर संभव मदद की। अब संस्था का प्रयास है कि जो भी पूर्वांचलवासी दूसरे राज्यों या विदेशों में बसे हुए हैं, उनमें से जो उद्योगपति और सक्षम लोग हैं, उनसे संपर्क करके पूर्वांचल में लघु, सूक्ष्म, मध्यम और कुटीर उद्योग लगाने के लिए प्रेरित करें। ताकि प्रवासी पूर्वांचलवासियों को उनके जिले में ही रोजगार मिल सके। यहां के लोग अपने संसाधनों और आर्थिक विकास को जरूरत के मुताबिक ढाल सकें। इसी सिलसिले में हम पूर्वांचल के हर जिले के जनप्रतिनिधियों के साथ संवाद स्थापित करके, उनके विचार समझ कर वहां के अनुकूल उपक्रम लगाने के लिए वर्चूअल मीटिंग का आयोजन कर रहे हैं। ताकी दूसरे राज्यो  और देशों में बसे प्रवासी उद्योगपतियों और पूंजीपतियों को क्षेत्र के अनुसार जरूरत और उद्योग के बारे में अवगत करा सकें। हमारी इस क्रमबद्ध श्रृंखला से परदेश में बसे प्रवासी उद्योगपतियों और सक्षम लोगों को बहुत ही उम्मीदें हैं। उन्हें भरोसा है कि यह संस्था पूर्वांचल के विकास को लेकर स्थानीय जनप्रतिनिधि, शासन- प्रशासन और प्रवासी उद्योगपतियों के बीच एक सेतु का काम करेगी। इसीलिए हम लगातार पूर्वांचल के जनप्रतिनिधियों से संपर्क करके वहां की खूबियां, जरूरते, और अनुकूलता आदि के बारे में जानने की कोशिश कर रहे हैं। 

पूर्वांचल को जानें
उत्तर प्रदेश के पूर्वी भाग को पूर्वांचल के नाम से जाना जाता है.  2011 की जनगणना के मुताबिक इसकी आबादी 7.52 करोड़ है. आज़ादी की लड़ाई में पूर्वांचल सबसे आगे रहा। लेकिन आज़ादी के 73 साल बीत जाने के बावजूद आज भी इस भाग के 4 करोड़ (50%) से अधिक लोग गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन करने को विवश हैं। 1.5 करोड़ से अधिके नौजवान या तो बेरोजगार हैं, या फिर मुम्बई, दिल्ली, बंगलोर, गुजरात जैसे जगहों की ओर पलायन कर रहे हैं। इसका जिम्मेदार कौन है? आगे लेख में इसका तथ्यपूर्ण विश्लेषण दिया जाएगा, लेकिन एक लाइन का उत्तर है, “स्वयं पूर्वांचल की जनता”। जनेश्वर मिश्र कहते थे कि उत्तर प्रदेश को बादशाहत की बीमारी लग गई है. वह अपने बारे में नहीं सिर्फ़ देश के बारे में और प्रधानमंत्री बनाने के बारे में सोचता है. यही बात मैं पूर्वांचल के बारे में कहना चाहूंगा. यहां पर विकास न हो पाने का कारण यही है. पहले धार्मिक बादशाहत का रोग था. बाद में राजनीतिक बादशाहत का रोग लग गया है. यहां के लोग इसी बात से खुश रहते हैं कि वे देश का प्रधानमंत्री चुनते हैं.’ ये बातें वरिष्ठ पत्रकार अरुण कुमार त्रिपाठी ने कही. इसी बात की पुष्टि करते हुए वरिष्ठ पत्रकार शीतला सिंह इसके लिए पूर्वांचल की जनता को ज़िम्मेदार बताते हैं. वे कहते हैं, ‘सबसे ज्यादा ज़िम्मेदार यहां के लोग हैं. हमारे यहां मेहनत कोई नहीं करना चाहता है. यहां के लोग सरकार के भरोसे बैठे रहते हैं. पश्चिमी उत्तर प्रदेश के विकास में सरकार से ज्यादा वहां के लोगों का योगदान रहा है. पूर्वी उत्तर प्रदेश के लोग दिल्ली-बंबई जाकर कष्टदायक काम कर लेंगे, लेकिन यहां पर अपना व्यापार नहीं करेंगे. रही सही कसर हमारी सरकारों ने भी पूरा कर दिया है. अब न यहां पर काम करने लायक इंफ्रास्ट्रक्चर बचा है, और न ही माहौल ऐसा है कि आप कुछ बेहतर कर सकें.’ ये पढ़ कर यदि आपके झूठे स्वाभिमान को यदि चोट पहुंचती है, तो पढ़ना बंद कर दें। जिन्हें इस विषय को गहराई से समझना है वे पढ़ें। 
 
पृष्ठभूमि:
इतिहास के आइने में अगर देखें तो 1962 में पं. जवाहर लाल नेहरू के समय में तत्कालीन सांसद गाजीपुर विश्वनाथ प्रसाद गहमरी संसद में पूर्वांचल के पिछड़ेपन की चर्चा करते हुए रो पड़े थे. उन्होंने कहा पूर्वांचल इतना पिछड़ा है कि, वहां लोग जानवर के गोबर से अन्न निकालकर खाते हैं. जिससे आहत होकर तत्कालीन प्रधानमंत्री पं. नेहरू ने पूर्वांचल के आर्थिक व सामाजिक पिछड़ेपन को दूर करने के लिए पटेल आयोग का गठन किया था. पुर्वी उत्तर प्रदेश के जिलों में इस आयोग ने दौरा कर विस्तृत रिपोर्ट सरकार को सौंपी. मगर दूसरे आयोगों की तरह इसका भी नतीजा सिफर साबित हुआ. पूर्वांचल पर पटेल आयोग की रिपोर्ट योजना आयोग की फाइलों में दब कर दफन हो गयी. पूर्वांचल से कल्पनाथ राय, राजनाथ सिंह, अमर सिंह जैसे नेता हुए लेकिन किसी ने भी इसकी लड़ाई नहीं लड़ी।
 
1955 में आई किताब थॉट्स एंड लिंग्विस्टिक स्टेट्स में डॉ. अंबेडकर ने भाषायी आधार पर राज्यों के विभाजन पर अपने विचार व्यक्त किए. उन्होंने उत्तर प्रदेश के तीन टुकड़े किए जाने की बात कही. प्रशासकीय कुशलता, राजव्यवस्था पर इतने बड़े राज्य के असमान प्रभाव को घटाने और छोटे राज्यों में अल्पसंख्यकों के हित को भी उन्होंने बंटवारे का आधार बनाया.
 
पूर्वांचल के सीमांकन:
 पूर्वांचल के विकास के लिए प्रयासरत संस्था ‘अपना पूर्वांचल महासंघ’ अब इस दिशा में 
रचनात्मक और सार्थक प्रयास कर रहा है. पूर्वांचल के आठ मंडलों का गठन 79807 वर्ग किमी क्षेत्र में फैला है. इसमें जनसंख्या घनत्व 943 व्यक्ति प्रति वर्ग किमी तथा लिंगानुपात 956 है. 
 
 प्रस्तावित पूर्वांचल राज्य में आठ मण्डल- वाराणसी, इलाहाबाद, मिर्जापुर, गोरखपुर, आजमगढ़, बस्ती, फैजाबाद व देवीपाटन के 26 जिले हैं.  वाराणसी, चन्दौली, गाजीपुर, जौनपुर, आजमगढ़, मऊ, बलिया, इलाहाबाद, कौशाम्बी, प्रतापगढ़, गोरखपुर, देवरिया, कुशीनगर, महराजगंज, बस्ती, संतकबीरनगर, सिद्धार्थनगर, बलरामपुर, गोंडा, फैजाबाद, अकबरपुर, सुल्तानपुर, अमेठी, मिर्जापुर, भदोही, व सोनभद्र शामिल हैं. इस प्रकार इस भाग में में  32 लोकसभा क्षेत्र व 155 विधानसभा क्षेत्र शामिल हैं. गोरखपुर, वाराणासी और इलाहाबाद जैसे महानगर हैं . इसके राजनीतिक, सांस्कृतिक और शैक्षिक महत्व को समझना चाहिए. प्रशासनिक रूप से पूर्वांचल में कानून व्यवस्था पर बहुत काम करना है. अलग से औद्योगिक पुलिस डिविजन बना कर उद्योग और पूंजी निवेश को आसान और सुरक्षित बनाया जाए।
 
उद्योग, कृषि, व्यापार:
पूर्वांचल के जिले उत्तर प्रदेश के सबसे ज्यादा पिछड़े हैं। बाढ़, बीमारी, बेरोजगारी ने इस क्षेत्र की अर्थव्यवस्था की कमर तोड़ कर रख दिया है। इसके लिए दीर्घ और लघु योजनाओं को बनाना जरूरी है.
पर्यटन, बुनकर, लघु उद्योग, चीनी, चावल, फल उत्पाद, सब्जी, फर्टिलाइजर, पीतल और चीनी मिट्टी प्रमुख उद्योग हैं। यहां के ज्यादातर उद्योग खुद से विकसित हुए हैं। इसमें किसी भी सरकार का विशेष प्रयास नहीं रहा है। पूर्वांचल खाद्यान्न का सबसे बड़ा उत्पादक है, विशेषकर गेहूं, चावल, गन्ना, दाल और आलू। खाद्य उत्पादो एवं पेय पदार्थ, चीनी और चीनी से संबंधित उत्पादो, तम्बाकू उत्पाद, रसायन और रासायनिक उत्पाद, धातु उत्पाद, मोटर वाहनों सहित धातु निर्माण कार्य, ट्रेलर और सेमी-ट्रेलर, वस्त्र, पहनने वाले वस्त्र, संचार उपकरण, परिवहन उपकरण, विद्युत तंत्र एवं उपकरण, फर्नीचर, गैर-धातु खनिज उत्पाद, प्रकाशन, मुद्रण एवं मीडिया, कागज और कागज उत्पाद, कालीन, जरी, साड़ी डेरी संबंधित उत्पाद प्रचुर मात्रा में रोजगार और खाद्य सुरक्षा दे सकते हैं. इसलिए अलग पूर्वांचल राज्य में इन संसाधनों को समृध्दि का साधन बनाया जाएगा। इस क्षेत्र में सॉफ्टवेयर और कंप्यूटर संबंधित कारोबार के लिए भी अच्छा अवसर है. लेकिन सरकारी दुर्दशा और जनता की उदासीनता ने इसे बर्बाद किया है, लेकिन अपना पूर्वाचल महासंघ विकसित पूर्वांचल के अपने सपनों को मरने नहीं देगा. पूर्वांचल की आर्थिक स्थिति सुधरने से बाकी की समस्याओं का हल निकालना आसान हो जाएगा. 
 
 पूर्वांचल के विकास की मांग क्यों जायज है?
आज़ादी के वक़्त देश की जनसंख्या 36.10 करोड़ थी। आज देश की आबादी 135 करोड़ से ज्यादा है। सिर्फ उत्तर प्रदेश की आबादी 21 करोड़ (जनगणना, 2011) हो गयी है. ठीक तो ये होता कि जिस अनुपात में जनसंख्या बढ़ी, उसी के मुताबिक संसाधन, रोजगार, सामाजिक विकास, समान अवसर और शासन का विकेंद्रीकरण होना चाहिए, लेकिन हुआ नहीं. विश्व के 16 देशों की जनसंख्या अकेले यूपी में है. लेकिन रोजगार और संसाधन सबसे कम है. इस कमी ने गरीबी बढ़ाई, अशिक्षा को सहा, अपराध और राजनीति की साँठ गाँठ भी देखा। पूर्वांचल के अपराध, माफिया तंत्र, जातिवाद, धार्मिक उन्माद और पिछड़ी सोच ने यहां 7 करोड़ लोगों का जीवन कठिन बना दिया है. सब सरकारी ठेके, सरकारी नौकरी या सरकारी दान अनुदान तक ही सीमित है. इन्हें बदलना होगा या नष्ट होना पड़ेगा. नहीं तो सारे प्रयास का गुड़ गोबर होता रहेगा.
 
 भारत का संविधान संघात्मक व्यवस्था प्रदान करता है. जिसके अनुसार शक्तियों और संस्थाओं का पूर्ण विकेंद्रीकरण होना चाहिए. यूपी में पंचायत और नगरपालिकाओं का काम काज देखकर लगता है, ये राज्य को लूटने, कमजोर करने और संसाधन  की संस्था भर रह गयी है. यूपी में 59 हज़ार से ज्यादा पंचायतें हैं. इसे मजबूत करने के लिए एक बहुत बड़े पैमाने पर सरकारी तंत्र और जन भागीदारी चाहिए. काम के बोझ तले दबी अफसरशाही कभी भी नहीं कर पायेगी. इसलिए हम सब को आगे आकर 7 करोड़ जनता के बीच काम करना होगा।  एक एक जिले को मिशन के तौर पर विकसित और आत्मनिर्भर बनाया जाएगा. हर जिले में विलेज बिज़नेस फोरम बनाई जाएगी. हर ग्राम पंचायत को स्थानीय जरूरतों के मुताबिक अपनी अर्थव्यवस्था विकसित करने का मौका दिया जाएगा. 
 
आप सब जुड़ें और अपने जिले से हर व्यक्ति को इस मुहिम से जोंड़ें. देखना आपकी आवाज इतनी बुलंद हो जाएगी कि आपके बिना पूर्वांचल की विकास गाथा लिखना असंभव होगा. 
 
पूर्वांचल के 28 जिले
 
1 बहराइच
2 बलरामपुर
3 गोंडा
4 सिद्धार्थनगर
5 महराजगंज
6 कुशीनगर
7 बस्ती
8 गोरखपुर
9 देवरिया
10 अयोध्या
11 आज़मगढ़
12 अम्बेडकर नगर
13 मऊ
14 बलिया
15 गाजीपुर 
16 वाराणसी
17 चंदौली
18 भदोही
19 जौनपुर
20 मिर्ज़ापुर
21 सोनभद्र
22 कौशाम्बी
23 प्रयागराज
24 प्रतापगढ़
25 सुल्तानपुर
26 अमेठी
27 संत कबीर नगर
28 श्रावस्ती